कल्याण ,28 जुलाई: कल्याण के पावन कल्याणेश्वर महादेव मंदिर में दिनांक 6 जुलाई को शाम 5 बजे माँ भगवती अखाड़ा के तत्वावधान में “आध्यात्म रत्न सम्मान” का आयोजन हुआ। यह कार्यक्रम सनातन संस्कृति और अध्यात्म के संवाहकों के प्रति श्रद्धा और कृतज्ञता प्रकट करने का एक आध्यात्मिक प्रयास था।
इस समारोह की अध्यक्षता माँ भगवती अखाड़ा की प्रतिष्ठित चेयरपर्सन डॉ. वैदेही तामण (माई) ने की। उन्होंने देशभर से आए उन साधकों, ब्राह्मणों, पुजारियों, संतों, गुरुकुलाचार्यों, वेद छात्रों, मंदिर सेवकों और धर्मप्रचारकों को सम्मानित किया जो वर्षों से निःस्वार्थ भाव से सनातन धर्म की सेवा कर रहे हैं।
कार्यक्रम में उपस्थित सभी साधकों को शॉल, श्रीफल और प्रशस्ति पत्र देकर सम्मानित किया गया। डॉ. तामण ने अपने उद्बोधन में कहा, “हमारा उद्देश्य केवल सम्मान करना नहीं, बल्कि समाज को ये बताना है कि आज भी हमारे बीच ऐसे दिव्य आत्माएं मौजूद हैं जो हमारे मूल्यों और परंपराओं को जीवित रखे हुए हैं।”
माँ भगवती अखाड़ा – सनातन सेवा की प्रेरक शक्ति
माँ भगवती अखाड़ा केवल एक आध्यात्मिक संगठन नहीं, बल्कि यह सनातन संस्कृति को सशक्त बनाने वाला एक आंदोलन है। डॉ. वैदेही तामण (माई) के नेतृत्व में अखाड़ा महिलाओं, संतों, ब्राह्मणों और सेवा में लगे सनातन धर्मावलंबियों को मंच प्रदान करता है। यह अखाड़ा महिलाओं के लिए साध्वी परंपरा को पुनर्जीवित कर रहा है और उन्हें धार्मिक नेतृत्व में भागीदार बना रहा है।
कल्याणेश्वर महादेव मंदिर – तप और साधना का केंद्र
कल्याण के ऐतिहासिक और आध्यात्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण कल्याणेश्वर महादेव मंदिर न केवल एक पूजा स्थल है, बल्कि यह एक जीवंत आश्रम और समाजसेवा का केंद्र भी बन चुका है। मंदिर परिसर में नियमित यज्ञ, वेदपाठ, ध्यान सत्र और गुरुकुल की गतिविधियाँ होती हैं। यह स्थान साधकों और श्रद्धालुओं के लिए आध्यात्मिक ऊर्जा का स्रोत बन गया है।
वेद आरोग्यम – आयुर्वेद और वेद का संगम
वेद आरोग्यम, माँ भगवती अखाड़ा द्वारा संचालित एक विशेष पहल है जिसमें आयुर्वेद, वेद और योग के माध्यम से समग्र आरोग्य को बढ़ावा दिया जाता है। यहाँ नि:शुल्क चिकित्सा शिविर, पंचकर्म, औषध निर्माण, योग प्रशिक्षण और जीवनशैली परामर्श प्रदान किए जाते हैं। इसके माध्यम से हजारों लोगों को शुद्ध और प्राकृतिक उपचार मिला है।
इस प्रकार “आध्यात्म रत्न सम्मान” केवल एक सन्मान समारोह न होकर, एक आंदोलन है – सनातन की पुनर्स्थापना, उसकी गरिमा की रक्षा और उन लोगों के प्रति श्रद्धा का सार्वजनिक प्रदर्शन जिन्होंने जीवनभर धर्म की सेवा की।