एक बार फिर से उनकी याद, स्मृतियाँ और उनकी सीख उनके शब्दों में आज भी जहन से आत्मा तक मुझे झकझोर देती हैं। ये बात हर उस शख्स को याद होगी जिसका किसी भी तरह का कोई खास रिश्ता किसी से जुड़ा हो। यूं तो ये मेरे बाबूजी की यादें हैं पर इस संसार के प्रत्येक जीव से किसी न किसी का इस बात का संबंध है क्योंकि सभी के जीवन में वो खास जीवनपर्यंत उनके साथ जुड़ा रहता है। आज उनकी एक बात याद आती है कि “मरने से पहले उन्होंने कहा था, जिस दिन मैं इस संसार को छोड़ कर ईश्वर के पास जाऊंगा, उस दिन पूरे भारत में अवकाश होगा।“ उनका ये कहना आज भी मेरे जहन में अंकित सा हो गया है। अब इस बात कि सार्थकता ये है कि उनका देवलोक धाम गमन 2 अक्टूबर 2017 को हुआ और इस दिन गांधी जयंती पर अवकाश रहता है। ये कथन उतना ही सत्य है जितना कि ईश्वर का होना। यूं तो उनका स्मरण हर पल मेरे साथ है पर उनकी बातों से मुझे हमेशा मार्गदर्शन मिलता रहे बस यही ईश्वर से प्रार्थना है।
आज उनकी षष्टम (6वीं) पुण्यतिथी है, प्रभु ने उनको जिस भी लोक में स्थान दिया हो मेरी और से उनको सादर वंदन यूं तो उनका स्मरण हर पल मेरे साथ है परंतु जो भी उनसे प्रेम करते हैं और उनको याद करते हैं उन सभी को कोटिश: नमन।।
70 के दशक के बालीवुड के अभिनेता व अभिनेत्रियों को भी श्री बंकट बिहारी जी के व्यक्तित्व ने प्रभावित किया और प्रदीप कुमार, परिक्षित साहनी, मनोज कुमार, रजा मुराद, रविन्द्र जैन, कामिनी कौशल, साधना, पं. विश्वेशवर शर्मा आदि कई हस्तीयां उनके मित्रों के रूप में शामिल हुए।
काव्य एवं साहित्य के क्षेत्र में आपके अविस्मरणीय योगदान के लिए समय-समय पर आपको विभिन्न पुरस्कारों द्वारा पुरस्कृत किया गया जिनमें मुख्य रूप से 1982 में काका हाथरसी पुरस्कार जयपुर के सांगानेर क्षेत्र में प्रदान किया गया, कानपुर में 1996 में षोडश काव्य पुरस्कार, मुम्बई में 2001 में महादेवी वर्मा पुरस्कार और कवियों के सबसे बड़े पुरस्कार टेपा पुरस्कार से रजा मुराद ने सम्मानित किया। सम्पूर्ण देशभर में कवि सम्मेलनों में आपके हास्य, करूण व वीर रस की कविताओं की मांग श्रोताओं द्वारा बार-बार की जाती रही है। अनेकानेक मंचों पर आपको समय-समय पर सम्मानित किया जाता रहा है। अपने जीवन के अंतिम पड़ाव में 9 जुलाई, 2017 को संस्कार भारती, जयपुर की ओर से श्री बंकट बिहारी पागल जी को कला गुरू सम्मान से सम्मानित किया गया। आपने ब्रजभाषा और राजस्थानी मंचों पर भी कविता पाठ कर शौहरत हासिल की।
आज के राजनीतिक संदर्भ में वो होते तो कुछ इस तरह कहते-
प्रजातन्त्र में चुनाव का मतलब है,
कुर्सी हथियाने का ढंग,
मगर यह खबर पढ़ कर तो हम रह गए दंग !
संसद में राष्ट्रीय मुद्दों पर बहस के दौरान,
कुर्सियाँ पड़ी रहती हैं खाली,
हमने इसकी तह पाली!
चढ़ती जवानी के जोश में इंसान,
खुश होकर शादी करता है!
जवानी का नशा उतरते ही,
घर वाली का सामना करने से भी डरता है!
इसी तरह राजनीति के चक्कर में,
चुनाव जीत कर कुर्सी पर तो आ जाता है!
मगर कुर्सी पर बैठ कर,
राष्ट्र की जिम्मेदारी निभाने से घबराता है!
इतने बड़े राष्ट्र कि जिम्मेदारी,
कहीं भुखमरी, कहीं गरीबी, काही बेकारी!
कहीं सूखा, कहीं अकाल, कहीं महामारी!
कहीं दंगा, कहीं फसाद,
आए दिन का विवाद!
विवाद से बचने की गरज से तो राजनीति में आए,
भला आप ही सोचिए ,
विवादास्पद बहस में कौन मगज खपाए!
बहाल हो इंद्राजी का,
उन्होंने इस बात को गंभीरता से नहीं लिया,
और संसद में सांसदों की उपसतिथि उपस्थिति को,
कंपलसरी नही किया!
पर मोदी राज में,
यूं कंपलसरी होने में लगती कितनी देरी है,
देरी की जिम्मेदारी, न तेरी है न मेरी है!
स्व. कवि बंकट बिहारी “पागल” के संकलन से!